| SPECIAL PROGRAM | श्रीकृष्ण ने तोड़ा इंद्र का अहंकार, गोवर्धन पूजा पर पड़ेगा सूर्यग्रहण |

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जाने गोवर्धन पूजा का महत्व

श्रीकृष्ण ने तोड़ा इंद्र का अहंकार

गोवर्धन पूजा पर पड़ेगा सूर्यग्रहण

26 अक्टूबर को होगी गोवर्धन पूजा

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है…लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं…इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है…इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है…इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है..लेकिन इस बार सूर्य ग्रहण के कारण गोवर्धन पूजा की तारीख बदल गई है..इस बार दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा नहीं होगी..यानी 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। जिसके कारण गोवर्धन पूजा पर्व 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा..आइये जानते हैं गोवर्धन पूजा की नई तारीख और मुहूर्त…

गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा..गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। ऐसे गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की…

सूर्यग्रहण के कारण टली गोवर्धन पूजा

विओ-2-हर साल दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं होगा। बता दें कि गोवर्धन पूजा इस वर्ष 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा…इस साल दीपावली 24 अक्टूबर को दिवाली है लेकिन अगले दिन यानी 25 अक्टूबर 2022 को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। जिसके कारण गोवर्धन पूजा पर्व 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा। किवदंतियों के अनुसार गोवर्धन पूजा के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव के अहंकार को परास्त किया था और ब्रज वासियों को भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र के प्रकोप से बचाया था। इसी उपलक्ष में आज भी गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है…

जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार बारिश से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे…तब सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और फिर हर साल गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी…तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा…

गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है..कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ” मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं?

मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की उपज होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं ऐसे अहँकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए..लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के स्थान पर गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियन्त्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें…

इन्द्र निरन्तर सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे लगा कि उनका सामना करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता…तब वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सारी कहानी सुनाई..तब ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यन्त लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहँकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया…

भगवान कृष्ण की लीला वाकई में अपरंपार है…सात दिनों तक 10 किलोमीटर में फैले गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छिगंली पर उठाया था..और अपनी प्रजा को सुरक्षित रखा था…

इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी…बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रङ्ग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है..

कैसे करे गोवर्धन की पूजा

विओ-7-इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है. इस दिन आप सवेरे समय पर उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करीये पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से बनाएँ। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप बनाकर फूल, पत्ती, टहनीयो एवँ गाय की आकृतियों से सजाया जाता है…गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है..फल मिठाई इत्यादि आप पूजा के दौरान गोवर्धन में अर्पित करिए गन्ना चढ़ाए और एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर झरनी में से छिड्कते हैं…गोवर्धन जो बनाया जाता है उसमें दहि डालकर उसको झरनी से छानीये और फिर गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा की जाती है परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दुसारा व्यक्ति अन्न यानि कि जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं.

सूर्यग्रहण के बीच कैसे करे गोवर्धन पूजा

दिवाली के अगले दिन यानी 25 अक्टूबर को दोपहर 4.30 बजे सूर्य ग्रहण अपने चरम पर रहेगा…इस समय यह सूर्य ग्रहण दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, पंचाब, उत्तराखंड, लेह और जम्मू में देखा जा सकेगा..जिस वजह से गोवर्धन पूजा अगले दिन यानी 26 अक्टूबर को की जाएगी…

कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परम्परा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान करा कर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सिंह पर घी लगाए गुड खिलाएं. गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है…

https://youtu.be/23X8aZrx8D8