लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को मनाई जा रही है। इस दिन को भारत में राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सरदार पटेल आजाद भारत के पहले उप प्रधानमंत्री थे। देश की आजादी में सरदार पटेल ने अभूतपूर्व योगदान दिया। जिसके बाद अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हुए भारत में सरदार पटेल को देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जाने लगा था। तो चलिए आपको बताते है उनसे जुड़ी कुछ बातें
सरदार वल्लब भाई पटेल का जन्म वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 में, नडियाद, गुजरात, ब्रिटिश भारत में लेवा पाटीदार समुदाय के एक मध्यमवर्गीय कृषि परिवार में हुआ था किसान परिवार में जन्मे पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं. आज़ाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है. सरदार वल्लब भाई पटेल हिंदू परिवार में पले-बढ़े, उनका प्रारंभिक बचपन करमसाद में परिवार के कृषि क्षेत्रों में बीता। किशोरावस्था के अंत तक, उन्होंने करमसाद में अपनी मध्य विद्यालय की शिक्षा पूरी की और साल 1897 में 22 साल की उम्र में, उन्होंने में नडियाद/पेटलाड के एक हाई स्कूल से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने काम करने और कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड जाने के लिए आवश्यक धन एकत्र करने का लक्ष्य रखा। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने कानून की किताबें उधार लेकर पढ़ाई की और डिस्ट्रिक्ट प्लीडर की परीक्षा पास की। साल 1900 में उन्होंने गोधरा में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। अपनी मेहनत और लगन से सरदार वल्लब भाई पटेल एक काबिल वकील बने। 1902 में, सरदार वल्लभ भाई पटेल कानून का अभ्यास करने के लिए बोरसाड (खेड़ा जिला) चले गए, जहाँ उन्होंने चुनौतीपूर्ण अदालती मामलों को सफलतापूर्वक संभाला। सरदार वल्लब भाई पटेल का इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई करने का सपना था। उसके लिए उन्होंने होनी नौकरी की कमाई से िलने वाले पैसो को इक्क्ठा करना शुरू किया और जब उनके पास वह इंग्लैंड जाने के लिए पास और टिकट खरीदने के पैसे इक्कट्ठे हो गए तो उन्होंने जल्द ही इंग्लैंड जाने की तैयारी शुरू कर दी थी।उनके टिकट पर उनके नाम शॉर्टफ़ॉर्म ‘वीजे पटेल’ लिखा हुआ था। उनके बड़े भाई विट्ठलभाई के भी वल्लभभाई के समान सिग्नेचर थे। लेकिन जब सरदार वल्लब भाई पटेल को पता चला कि उनके बड़े भाई की भी पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड जाने की इच्छा है तब वह गहरी सोच में पड़ गए।उनका परिवार भी चाहता था की इंग्लैंड पढाई के लिए उनका बड़ा भाई ही जाये ताकी उनके घरखर्च में जल्द मदद कर सके तो अपने परिवार की इच्छाओ और अपने बड़े भाई का सम्मान करते हुए उन्होंने अपने सपने का बलिदान दे दिया और खुद इंग्लैंड ना जाकर वो सारे पैसे जो उनको इक्कट्ठा करने में कई महीने लग गए थे उन्होंने अपने बड़े भाई को दे दिए और अपने बड़े के साकार किया।