भाजपा अब भी मोदी शाह के भरोसे
आप को त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद, चुनाव में नजर नहीं आ रही कांग्रेस
हिमाचल विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही गुजरात विधानसभा चुनाव की भी अधिसूचना जारी न होने पर कई सवाल खडे़ हो रहे थे। जबकि दोनों प्रदेशों में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना एक साथ जारी होने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कारण जो भी हो, बाद में गुजरात चुनाव की भी अधिसूचना जारी कर दी गई। 182 सीटों के लिए दो चरणों में 1 दिसंबर और 5 दिसंबर को मतदान होगा। जबकि मतगणना 8 दिसंबर को होगी। इस चुनाव में सबसे अधिक फोकस गुजरात विधानसभा चुनाव पर है।
भाजपा को परेशान कर सकती है सत्ता विरोधी लहर
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अलावा आक्रामक तरीके से मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी के साथ मुकाबला करेगी। बीजेपी ने 1995 से लेकर लगातार छह बार चुनावी जीत दर्ज की है। आइये विश्लेषण में जानते हैं कि गुजरात में बीजेपी की ताकत, कमजोरी, अवसर और खतरे क्या हो सकते हैं। ज्ञात हो कि गुजरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य है। गुजरात में आज भी नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के ही भरोसे भाजपा चुनाव लड़ रही है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बीजेपी के लिए एक तरह से तुरुप का इक्का साबित हो रही है।
गुजरात का राजनीतिक परिदृश्य पंजाब से अलग है। पंजाब में कांग्रेस की आपसी फूट का लाभ आम आदमी पार्टी को मिला। पंजाब में भाजपा का वैसे भी कोई खास अस्तित्व नहीं था। वहां कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस में मुख्यमंत्री बदले जाने के बाद से कांग्रेस चुनाव में कमजोर हो गई। जिसका लाभ आम आदमी पार्टी ने उठाया। गुजरात में नरेन्द्र मोदी के बाद भी लगातार भाजपा की सरकार सत्ता में बनी रही। जिसके पीछे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का अप्रत्यक्ष सहारा है। आज भी यह वर्चस्व कायम है। गुजरात में दूसरे नंबर पर कांग्रेस है। कांग्रेस गुजरात चुनाव में अभी तक मौन नजर आ रही है आप नए सिरे से प्रवेश कर रही है और सत्ता तक पहुंचने की उम्मीद कर रही है। लेकिन गुजरात की सत्ता अभी उसकी पहुंच से बहुत दूर है। गुजरात में पंजाब की तरह आप को सत्ता में अकेले आने की उम्मीद दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है। यदि गुजरात में सत्ता परिवर्तन होता भी है तो इसमें कांग्रेस का सहयोग मिलना बहुत जरुरी है। राजनीति में कुछ भी असंभव नही होता। लेकिन फिलहाल गुजरात में भाजपा सत्ता में बने रहना नजर आ रहा है। गुजरात चुनाव पर देश भर की नजर टिकी हुई है। है। जहां देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जुडे़ हुए हैं। इस राज्य के चुनाव परिणम देश की राजनीति को बदल सकते हैं। अधिसूचना के पहले केन्द्र सरकार ने कई सौगात दी है। इन सौगातों का चुनाव में कितना असर होगा। यह चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।
आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन के चलते 2017 के चुनावों में बीजेपी को पाटीदार समुदाय के गुस्से का सामना करना पड़ा था। लिहाजा वह अब पाटीदारों तक अपनी पहुंच पर भरोसा कर रही है। पिछले साल सितंबर में भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाने और आरक्षण आंदोलन के अगुआ हार्दिक पटेल को अपने पाले में लाने का फैसला भाजपा के पक्ष में काम कर सकता है। वहीं बीजेपी की गुजरात इकाई के पास बूथ स्तर तक एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है। सत्ताधारी भाजपा हिन्दुत्वए विकास और मोदी शाह की बदौलत तेज प्रगति के मुद्दों पर भरोसा कर रही है। शाह बीजेपी की चुनावी तैयारियों पर नजर बनए हुए हैं। उन्हें बीजेपी का मुख्य रणनीतिकार भी माना जाता है।
भाजपा के पास मोदी शाह के अलावा ऐसा तीसरा कोई बड़ा नेता नहीं है जो चुनाव में अपने दम पर परिणाम पक्ष में कर सके। यहां एक मजबूत स्थानीय नेता की कमी हमेशा महसूस की जाती रही है। जो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जगह भर सके। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 से गुजरात में मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल सहित तीन मुख्यमंत्री बन चुके हैं। मोदी 13 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे।
गुजरात में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने राज्य सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दा बना लिया है। इसके अलावा बीजेपी को महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक संकट जैसे मुद्दों पर जनता का सामना करना पड़ सकता है। वहीं आप के आक्रामक अभियान ने राज्य की शिक्षा प्रणाली और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में खामियां निकालने की कोशिश की है।
गुजरात में विपक्ष की कमजोरी को भाजपा ने अपनी ताकत बना लिया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस प्रचार से गायब नजर आ रही है तो उसके नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त नजर आ रहे हैं। भाजपा अगर गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में आप को पांच से कम सीटों पर समेट ने में सफल होती है तो उसके पास राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने की अरविंद केजरीवाल नीत पार्टी की महत्वाकांक्षाओं को सीमित करने का मौका होगा।
हाल ही में मोरबी में हुए पुल हादसे में 135 लोगों की जान चली गई। इसे कांग्रेस और आप ने मुद्दा बना लिया है। बीजेपी की चुनावी सफलता में यह आड़े आ सकती है। वहीं मजबूत केंद्रीय नेतृत्व के चलते बीजेपी का भीतर अंदरूनी कलह काफी हद तक दबा हुआ है लेकिन हार से दरारें खुलकर सामने आ सकती हैं। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सत्तारूढ़ दल को बहुमत हासिल करने के लिए सहयोगी ढूंढना मुश्किल हो सकता है। अगर आप कुछ जगहों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहती है तो यह बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है। 2002 के बाद से हर चुनाव में भगवा पार्टी की सीटों की संख्या में गिरावट आ रही है। उसने 2002 में 127 2007 में 117, 2012 में 116 और 2017 में 99 सीटें जीती थीं