बाघों का अवैध व्यापार!
दुनिया भर में फल-फूल रहा कारोबार
बाघों की तस्करी का गुनहगार कौन?
आखिर कौन है इस तस्करी का किंग?
कहां होती है बाघों की तस्करी?
NEWS HOUR के खास कार्यक्रम में आपका स्वागत है… मैं हूं देवेंद्र कुशवाहा… आज इस कार्यक्रम में हम सबसे पहले आज की बड़ी 5 ख़बरो पर नजर डालेंगे… उसके बाद आज के इस खास कार्यक्रम में बात करेंगे बाघों की हो रही तस्करी के बारे में… दुनिया में घट रही बाघों की संख्या के साथ बाघों का तस्करी भी जारी है… कैसे होती है यह तस्करी… और कौन सा देश इनकी तस्करी का बादशाह है बताएंगे इसी कार्यक्रम में… लेकिन सबसे पबले आज की बड़ी ख़बरों पर डालते है नज़र…
एक तरफ देश में जहां बाघों को बचाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं… वहीं भारत के साथ दुनिया भर में इनका अवैध व्यापार फल-फूल रहा है… पिछले 23 वर्षों में इनकी अवैध तस्करी की दुनिया भर में कुल 2,205 घटनाएं सामने आई हैं… जिनमें से 34 फीसदी यानी 759 घटनाएं अकेले भारत में दर्ज की गई हैं… जो 893 यानी जब्त किए गए 26 फीसदी बाघों के बराबर है… इसके बाद 212 घटनाएं चीन में जबकि 207 मतलब 9 फीसदी इंडोनेशिया में दर्ज की गई हैं… इस बारे में अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक द्वारा जारी नई रिपोर्ट “स्किन एंड बोन्स” के अनुसार संरक्षण के प्रयासों को कमजोर करते हुए, शिकारी बाघों को उनकी त्वचा, हड्डियों और शरीर के अन्य अंगों के लिए निशाना बना रहे हैं…. रिपोर्ट की माने तो पिछले 23 वर्षों में औसतन हर साल करीब 150 बाघों और उनके अंगों को अवैध तस्करी के दौरान जब्त किया गया है… आइए ग्राफिक्स के माध्यम से जानते हैं… अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक द्वारा जारी नई रिपोर्ट “स्किन एंड बोन्स” क्या कहती है…
पिछले 23 वर्षों में जनवरी 2000 से जून 2022 के बीच 50 देशों और क्षेत्रों में बाघों और उनके अंगों की तस्करी की यह जो घटनाएं सामने आई हैं उनमें कुल 3,377 बाघों के बराबर अंगों की तस्करी की गई है। गौरतलब है कि दुनिया में अब केवल 4,500 बाघ ही बचे हैं, जिनमें से 2,967 भारत में हैं । अनुमान है कि 20वीं सदी के आरम्भ में इनकी संख्या एक लाख से ज्यादा थी।
रिपोर्ट के अनुसार यदि इसी तरह उनका शिकार और तस्करी होती रही तो यह दिन दूर नहीं… जब दुनिया में यह विशाल बिल्ली प्रजाति जल्द ही विलुप्त हो जाएगी… गौरतलब है कि इनकी बरामदगी 50 देशों और क्षेत्रों से हुई है, लेकिन इसमें एक बड़ी हिस्सेदारी उन 13 देशों की थी जहां अभी भी बाघ जंगलों में देखे जा सकते हैं… रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 23 वर्षों में तस्करी की जितनी घटनाएं सामने आई हैं उनमें से 902 घटनाओं में बाघ की खाल बरामद की गई थी… इसके बाद 608 घटनाओं में पूरे बाघ और 411 घटनाओं में उनकी हड्डियां बरामद की गई थी… ट्रैफिक ने आगाह किया कि है कि बरामदी की यह घटनाएं बड़े पैमाने पर होते इनके अवैध व्यापार को दर्शाती हैं लेकिन यह इनके अवैध व्यापार की पूरी तस्वीर नहीं हैं क्योंकि बहुत से मामलों में यह घटनाएं सामने ही नहीं आती हैं।_
हालांकि रिपोर्ट की मानें तो 2018 के बाद से बाघों और उनके अंगों की बरामदी की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद भारत और वियतनाम में इस तरह की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है… पता चला है कि पिछले चार वर्षों में वियतनाम में बरामदी की इन घटनाओं में 185 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है… वहीं ट्रैफिक ने जानकारी दी है कि थाईलैंड और वियतनाम में जब्त किए गए अधिकांश बाघों को संरक्षण के लिए रखी गई सुविधाओं से प्राप्त होने का संदेह है, जो दर्शाता है कि बाघों और उनके अंगों के अवैध व्यापार को बढ़ावा देने में इन बंदी सुविधाओं की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। पता चला है कि थाईलैंड में जितने बरामदी हुई हैं उनमें से 81 फीसदी बाघ बंदी सुविधाओं जैसे चिड़ियाघर, प्रजनन फार्म आदि से जुड़े थे जबकि वियतनाम में यह आंकड़ा 67 फीसदी था…रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके अनुसार 2022 की पहली छमाही में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है… इस दौरान इंडोनेशिया, थाईलैंड और रूस ने पिछले दो दशकों में जनवरी से जून की तुलना में बरामदी की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है… अकेले इंडोनेशिया में 2022 के पहले छह महीनों में करीब 18 बाघों के बराबर अवैध तस्करी की घटनाएं सामने आई है जो 2021 में सामने आई तस्करी किए बाघों की कुल संख्या से भी ज्यादा हैं… इतना ही नहीं ट्रैफिक ने दक्षिण पूर्व एशिया में बाघों और उनके अंगों की तस्करी में शामिल 675 सोशल मीडिया खातों की भी पहचान की है जो दर्शाता है कि संकट ग्रस्त प्रजाति का अवैध व्यापार अब ऑनलाइन भी तेजी से फैल रहा है। आंकड़ों से सामने आया है कि इनमें से लगभग 75 फीसदी खाते वियतनाम में आधारित थे। ऐसे में इनके संरक्षण को लेकर दुनियाभर में जो प्रयास किए जा रहे हैं वो कैसे सफल होंगें यह एक बड़ा सवाल है
अब सवाल यह है कि बाघों की संख्या में गिरावट के पीछे क्या तस्करी ही एक कारण है…या फिर कुछ और भी जिम्मेदार कारक हैं…दरअसल गति और शक्ति के लिए पहचाने जाने वाले इन बाघों की संख्या में आने वाली इस गिरावट के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं…. इसमें पहला कारण तो निरंतर बढ़ती आबादी और तीव्र गति से होते शहरीकरण की वजह से दिनोंदिन जंगलों का स्थान कांक्रीट के मकान लेते जा रहे हैं… यूं कहें कि जंगल में जबरन घुसे विकास ने जानवरों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है… वनोन्मूलन के कारण बाघों के रहने के निवास में कमी आ रही हैं… जिससे बाघों की संख्या घटती जा रही हैं। तो वहीं दूसरा कारण बाघों की होने वाली तस्करी हैं… बाघों के साम्राज्य में डिजिटल कैमरे की घुसपैठ और पर्यटन की खुली छूट के कारण तस्कर आसानी से बाघों तक पहुंच रहे हैं और तस्करी की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। चीन में कई देसी दवा, औषधि और शक्तिवर्द्धक पेय बनाने में बाघ के अंगों के इस्तेमाल के बढ़ते चलन के कारण भी बाघों की तस्करी की जा रही हैं। अन्य देशों के लोग अपनी निजी स्वार्थपूर्ति के कारण बाघों की तस्करी और शिकार करके उनके अंगों को चीन भेज रहे हैं। जिसके कारण बाघों की संख्या घट रही हैं
भारत में भारतीय वन्य जीवन बोर्ड द्वारा 1972 में शेर के स्थान पर बाघ को भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में अपनाया गया था। देश के बड़े हिस्सों में इसकी मौजूदगी के कारण ही इसे भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में चुना गया था। इसके बाद सरकार ने बाघों की कम होती संख्या को देखते हुए 1973 में ‘बाघ बचाओ परियोजना’ शुरू की थी। जिसके तहत चुने हुए बाघ आरक्षित क्षेत्रों को विशिष्ट दर्जा दिया गया और वहां विशेष संरक्षण के लिए प्रयास किए गए…इसी परियोजना को अब ‘नेशनल टाइगर अथॉरिटी’ बना दिया गया है बाघ को बचाने के लिए सरकार ने योजना व नीतियां बनाने में कोई कसर नहीं रखी है, लेकिन इतने इंतजाम के बाद भी बाघों की संख्या निरंतर कम क्यों होती जा रही हैं? यह बड़ा सवाल है। सच तो यह है कि राज्य सरकारों का उदासीन रवैया और रिश्वत की प्रवृत्ति ने संरक्षण के नाम पर बाघों तक पहुंचने वाले लाभ को बीच में ही निगल दिया है। इस कारण बाघ संरक्षण के सरकारी इंतजाम ‘सफेद हाथी’ साबित हो रहे हैं। सरकार ने वन्य जीव संरक्षण के नाम पर कई बड़े कानून बना रखे हैं। वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत राष्ट्रीय पशु बाघ को मारने पर सात साल की सजा प्रावधान है। लेकिन लचर स्थिति के कारण विरले लोगों को ही सजा हो पाती हैं…
इन हालातों में आवश्यकता है कि जंगल टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए और उसे पुलिस के समकक्ष अधिकार दिए जाने चाहिए। वन्य जीवों व जंगल से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए विशेष ट्रिब्यूनल की स्थापना और सूखे व किसी भी आपदा जैसे कि आग वगैरह पर तुरंत और प्रभावी कार्रवाई के लिए आपदा प्रबंधन टीमों का गठन होना चाहिए। वन विभाग को बेहतर और आधुनिक साजो-सामान और अधिक अधिकार दिए जाएं। जिससे वे अवैध शिकारियों व लकड़ी तस्करों का मुकाबला कर पाएं।
कानून का पालन और खुफिया तंत्र को विकसित किए जाने की जरूरत है। वनों और उसमें रहने वाले प्राणियों के बारे में लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। अगर सभी लोगों को इस समस्या के दूरगामी परिणाम पता होंगे तो निश्चित रूप से राजनैतिक पार्टियों के घोषणा-पत्रों में इस मुद्दे को भी प्रमुखता से स्थान मिलेगा और सत्ता में आने पर कोई ठोस कदम उठाया जाएगा… साथ ही जन-सामान्य को चाहिए कि वे वन्य प्राणियों को दया व सहानुभूति की दृष्टि से देखें और ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करें, जिन्हें बनाने में वन्य जीवों के अंगों का इस्तेमाल किया जाता है। गाहे-बगाहे शहरी क्षेत्र में घुस आए किसी भी जंगली जानवर को जान से न मारें। बरसों से चली आ रही योजनाओं और घोषणाओं के हाल देखकर लगता है कि सघन वनों से इंसानी दखल बिलकुल समाप्त कर देना चाहिए।