रूस और यूक्रेन युद्ध!
अमेरिका को हुआ राजनीतिक नुकसान!
UN हुआ असफल!
भारत की ओर विश्व की निगाहें!
उद्ध किसी समस्या का हल नहीं हो सकता…फिर भी युद्ध होते हैं…उसी के साथ लिखी जाती है… तबाही और बर्बादी की कहानी… और यह कहनी लिखी जा रही है यूक्रेन और रूस के बीच… इस युद्ध से विश्व में क्या राजनितिक उथल-पुथल हो रहा है… दुनिया पर किस प्रकार का आर्थिक,सामाजिक और सास्कृतिक नुकसान पड़ रहा है… आज इस कार्यक्म में इसी पर करेंगे विश्लेषण…
रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान अब तक दोनों देशों को जानमाल का भारी नुकसान हो चुका है… अमेरिका के शीर्ष जनरल ने बुधवार को अनुमान लगाया कि युद्ध में रूस की सेना के मारे गए और घायल सैनिकों की संख्या 1 लाख से अधिक हो गई है… वहीं, यूक्रेन की सेना को भी ‘शायद’ इतना ही नुकसान झेलना पड़ा है… इसके साथ ही उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान अब तक लगभग 40,000 यूक्रेनी नागरिक भी मारे गए हैं… लाखों यूक्रेनी लोगों ने दूसरे देशों में शरण ली है… यूक्रेन के कई शहर पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं… इस युद्ध का अंत कब होगा… ये भी नजर नहीं आ रहा है… लेकिन इस युद्ध से राजनीतिक रुप से सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को हुआ है… तो वहीं भारत की ओर पूरी दुनिया की नज़रें है… अर्थात कह सकते हैं कि भारत का राजनितिक कद दुनिया के देशों में बढ़ा हुआ नज़र रहा है…
बात अमेरिका के राजनीतिक प्रभाव की करें तो… रूस-यूक्रेन युद्ध ने अगर किसी देश की प्रतिष्ठा को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है तो वह अमेरिका है… अमेरिका ही वह देश है जिसने यूक्रेन को नाटो की सदस्यता के सपने दिखाए और संकट के समय यूक्रेन के साथ खड़े होने के वादे किए… लेकिन वह न तो युद्ध रोक सका और न ही प्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन की कोई सहायता कर सका… रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होते ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस को कठोर भाषा में चेतावनी दी और अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ मिलकर रूस को सबक सिखाने की धमकी भी दे डाली… परंतु वह केवल धमकी ही साबित हुई जो रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने तक ही सीमित रह गई… इस घटना की वजह से अमेरिका अपने सहयोगी देशों के बीच एक ऐसी छवि वाले राष्ट्र के रूप में भी उभरा है… जिस पर संकट के समय यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह अपने मित्र देश की रक्षा कर पाएगा…
मेरिका के साथ ही नाटो जैसे संगठन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं… जिसका गठन ही रूसी शक्ति का मुकाबला करने के लिए किया गया था…द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों… सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ… भाषण व टू्रमैन सिद्धांत के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई… तो उसके बदले में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी कर दी… इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए… जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके… मार्च 1948 में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्ज़मबर्ग ने ब्रुसेल्स की संधि पर हस्ताक्षर किए… इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था… साथ ही संधिकर्ताओं ने यह वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर संभव सहायता देगे… युक्रेन को इन्हीं नोटो देशों में शामिल होने की चर्चा हो रही थी… और युद्ध के दौरान नाटो देशों के साथ मिलकर बाइडेन ने रुस को सबक सिखाने की बात कही… लेकिन यह धमकी ही रह गई…
रूस-यूक्रेन युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं…संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का मूल उद्देश्य विश्व के देशों में शांति व्यवस्था कायम करने के लिए किया गया था… लेकिन रुस युक्रेन के मामले में यह संस्था भी फेल साबित हुई… मानव सभ्यता के विनाश को रोकने के लिए विश्व के राष्ट्रों ने विश्व-शान्ति और सुरक्षा के लिए एक स्थायी विश्व संगठन की स्थापना हेतु सजग तथा सामूहिक प्रयास आरम्भ किए… ऐसे विश्व संगठन के निर्माण के लिए सन 1941 से ही विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में विचार किया गया और इस प्रकार सन् 1945 में दो माह तक चले सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 10,000 शब्दों वाले एक मसविदे पर 50 राज्यों ने हस्ताक्षर करके संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की… 24 अक्टूबर, 1945 तक विश्व के सभी बड़े राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र को स्वीकार कर लिया…
रूस-यूक्रेन युद्ध पर दुनिया को दो धड़ों में बांटने की कोशिश हो रही है… हालांकि, भारत ने इस युद्ध में भी गुटनिपेक्षता की नीति अपना रखी है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस और यूक्रेन को सलाह दी है कि वो बातचीत के जरिए समस्या का हल निकालें, क्योंकि युद्ध किसी विवाद को हल करने का विकल्प नहीं है… हाल ही में रूस के दौरे पर गए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी अपने रूसी समकक्ष को बातचीत से समस्या हल करने की सलाह दी… साथ ही पूरी दुनिया की नज़र भारत पर टिक गई है… दुनिया को लगता है… भारत दोनों देशों का करीबी है और वह दोनों को युद्ध न करने की सलाह दे सकता है… और युद्ध को समाप्त कराने में अहम भूमिका निभा सकता है… भारत इस ओर कदम बड़ा भी रहा है… आइए जानते हैं भारत
आक्रामकता की कठोर भाषा में निंदा की… और कई आर्थिक प्रतिबंध भी लागू लगाएं हैं… कई यूरोपीय देशों ने रूस से आ रही गैस के आयात में भारी कटौती करने का निर्णय लिया… एपल और वाल्वो जैसी कंपनियों ने रूस में दी जा रही सेवाओं की समीक्षा करने और उन्हें बंद करने का भी निर्णय ले लिया… रूस की एयरलाइंस सेवाओं को भी भारी हानि उठानी पड़ी है… इन सभी कारकों की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था में लगभग 12 प्रतिशत की भारी गिरावट भी देखने को मिली…
रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में महंगाई को भी कई गुना बढ़ा दिया है…. कई देश इस समय सबसे ज्यादा महंगाई दर दर्ज कर रहे हैं… भारत भी इस मामले में कई रिकॉर्ड तोड़ काफी आगे निकल चुका है… आंकड़े बताते हैं कि इस साल अप्रैल में भारत में सालाना महंगाई दर 7.8 फीसदी पहुंच गई थी. यहां भी वनस्पती तेल, गेहूं, चीनी के दामों में बड़ी बढ़ोतरी देखने को मिली है….
बता दें कि रूस दुनिया का शीर्ष गेहूं निर्यातक है… वहीं यूक्रेन इस मामले में पांचवें स्थान पर है… महंगाई और कम गेहूं के उत्पादन के अनुमान के चलते भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था… भारत सरकार ने देश की समग्र खाद्य सुरक्षा के प्रबंधन को देखते हुए ये कदम उठाया था…. देश में गेहूं के स्टॉक के साथ-साथ उत्पादन में गिरावट की वजह विशेषज्ञ कीमतों में हुई बढ़ोतरी को बता रहे हैं… देश में गेहूं के आटे के साथ बेकरी उत्पादों, बिस्किट और ब्रेड की कीमतों में भी हाल के महीनों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. हालांकि, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने और खरीद बढ़ाने के फैसले से गेहूं प्रॉडक्ट्स की कीमतों में कुछ नरमी देखने को मिली है…
भारत को अपने सूरजमुखी के तेल का 90 फीसदी से अधिक यूक्रेन और रूस से प्राप्त होता है. मार्च 2021 के वित्तीय वर्ष में भारत ने लगभग 13.35 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात किया था, जिसकी कीमत 10.5 अरब डॉलर से अधिक थी. इसमें पाम तेल की हिस्सेदारी करीब 56 फीसदी, सोयाबीन तेल की 27 प्रतिशत और सूरजमुखी की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी रही है.
रूस भारत से चाय करीब 13 प्रतिशत आयात करता है. लेकिन युद्ध ने निश्चित रूप से चाय निर्यातकों की रातों की नींद हराम कर दी थी. हालांकि, दो महीने की रुकावट के बाद बाद भारत रूस को फिर से चाय निर्यात शुरू कर चुका है. चाय, चावल, फल, कॉफी ले जाने वाले कंटेनर बड़े पैमाने पर जॉर्जिया के बंदरगाहों के माध्यम से रूस पहुंच रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र कॉमट्रेड के डेटाबेस के अनुसार, साल 2021 के दौरान भारत ने रूस को करीब 84.91 मिलियन अमेरिकी डॉलर का चाय निर्यात किया था. महीनों बाद वस्तुओं की उपलब्धता अब सामान्य हो रही है.
भारत में ही नहीं बल्कि कई देशों में कीमतें बढ़ रही हैं. हमारी सरकार बहुत तेजी से इससे पार पाने के लिए कदम उठा रही है. मैं भारत के ग्रोथ के बारे में बहुत सकारात्मक हूं. भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है.