हिजाब विवाद…जजों की अलग-अलग राय!
होगी सुनवाई…अब बड़ी बेंच के पास!
कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला रहेगा लागू
स्कूल कॉलेज में हिजाब पहनने पर लगी रहेगी पाबंदी
हिजाब-ए-इख़्तियारी यानी एक महिला की हिजाब को चुनने की पसंद… कर्नाटक से लेकर ईरान तक हर तरफ़ ये नारा सुनाई दे रहा है… ईरान में हज़ारों महिलाएं उस क़ानून के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं… जो उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य करता है… वहीं भारत के कर्नाटक प्रांत में कॉलेज छात्राएं हिजाब पहनने के अधिकार की मांग कर रही हैं… ये दोनों ही विचार एक दूसरे के विरोधी प्रतीत हो सकते हैं… लेकिन इनका तर्क एक ही है- एक महिला के पास ये अधिकार होना चाहिए… कि वो तय कर सके कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है… लेकिन भारत में स्कूलों में ड्रेस कोड तय करने का अधिकार स्कूलों के पास है… और कर्नाटक सरकार इस अधिकार को सुरक्षित रखा है… जिस पर सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई… और फैसला फंसा हुआ आया… आज इसी मुद्दे पर करेंगे चर्चा… तो आइए शुरु करते हैं…फंस गया फैसला…
सुप्रीम कोर्ट में हिजाब विवाद पर सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच ने अब इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की सिफ़ारिश की है… जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया ने गुरुवार को इस मामले पर बंटा हुआ फ़ैसला दिया… अंतिम निर्णय पर एकमत न होने के कारण उन्होंने ये केस चीफ़ जस्टिस यूयू ललित के पास भेजा है …जो अब इस पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन करेंगे… सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का मतलब है कि जब तक ये अदालत अपना फ़ैसला नहीं सुनाती, कर्नाटक हाई कोर्ट का फ़ैसला मान्य रहेगा… यानी जब तक सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इस पर निर्णय नहीं करती, तब तक स्कूल-कॉलेज में हिजाब न पहनने की यथास्थिति बनी रहेगी…
हिजाब मामले पर आए इस विभाजित फ़ैसले से सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच, नए सिरे से इसकी सुनवाई करेगी…
गुरुवार को अदालत में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, “हमारी राय अलग है, मेरे इस मुद्दे पर 11 सवाल हैं.”
जस्टिस गुप्ता ने छात्रों की याचिकाओं को ख़ारिज किया और कर्नाटक हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराते हुए कहा, ” ये मामला हम चीफ़ जस्टिस को भेज रहे हैं ताकि इसकी सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन किया जाए.”… लेकिन बेंच के दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फ़ैसले को खारिज करते हुए कहा, “हिजाब पहनना व्यक्तिगत पसंद का मुद्दा है… मेरे दिमाग में सबसे ज़्यादा ये बात आ रही है कि क्या हम इस तरह के प्रतिबंध लगाकर एक छात्रा के जीवन को बेहतर बना रहे हैं?”…