दुनिया की आबादी 8 अरब को पार, दुनिया में 40% कामकाजी 60% निठल्ले | SPECIAL PROGRAME |

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दुनिया में कितने कामकाजी…!

दुनिया की आबादी 8 अरब को पार

1974 में दुनिया की आबादी थी करीब 4 अरब

दुनिया में 40% कामकाजी…60% निठल्ले!

क्या है जीडीपी?

गृहणियों के काम से क्या बढ़ेगा जीडीपी?

कैसे बढ़ेगी विकास की रफ्तार?  

संयुक्त राष्ट्र के एक आकलन के अनुसार  नवंबर 2022 के मध्य तक दुनिया की आबादी 8 अरब को पार कर गई… ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दुनिया की इतनी बड़ी आबादी क्या कामकाजी है?… क्या सभी लोगो के हाथ में काम है… अगर नहीं तो कितने लोग काम करते है… और जो काम नहीं करते क्या वे देश की जीडीपी के लिए योगदान दे रहे है… आज इन्हीं सवालों के जवाब के लिए करेंगे विश्लेषण… तो आइए शुरू करते है दुनिया में कितने कामकाजी….

दुनिया में आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है… उस रफ्तार से विकास को भी गति देनी आवश्यक है…अगर उस गति से विकास को रफ्तार नहीं दे पाया गया… या जो देश उस गति से विकास का पहिया नहीं घुमा पाया तो वह देश पिछड़ता चला जाएगा… अगर बात आबादी कि करें…

साल 1974 में दुनिया की आबादी करीब 4 अरब की थी…और आज दुनिया 8 अरब की आबादी को पार कर गई है… यानी इसे दोगुना होने में आधी सदी से भी कम का वक्त लगा… माना जा रहा है कि अगली आधी सदी में दुनिया की आबादी बढ़कर 9.70 अरब तक पहुंच जाएगी…

आपने ग्राफिक्स के माध्यम से यह देखा कि 1974 से 2022 तक आबादी बढ़ने कि रफ्तार तेज रही है और 2022 तक आते आते यह आबादी बढ़ कर दुगनी हो गई… लेकिन अगली आधी सदी में यह आबादी 1अरब 70 करोड़ ही बढ़ रही है…मतलब साफ है अगली आधी सदी में आबादी बढ़ने की रफ्तार धीमी रहने वाली है… एक अध्ययन के मुताबिक 2070 तक आबादी कि रफ्तार में गिरावट आनी शुरू ही जाएगी…और इसके अगले करीब तीन दशकों में यानी कि 2100 तक आते-आते आबादी घटकर आठ अरब  तक पहुंच जाएगी…

ये तो रही दुनिया की आबादी की बात…लेकिन इन सब में जो महत्वपूर्ण बात है वह यह है कि दुनिया की आबादी में कितने लोगों के हाथों में काम है… यानी कि कितने लोग कामकाजी हैं…और जो काम करते हैं उनका और उनकी विशेषज्ञता कौन सी है… आधिकारिक तौर पर अगर देखा जाय तो विश्व की कुल जनसंख्या के आधे से कम लोगों के पास ही काम  है… अगर एक अध्ययन की बात करें तो दुनियां की कुल जनसंख्या का  केवल 40 प्रतिशत लोगों के पास ही नौकरी या व्यापार है…यहां  काम करने का मतलब है कि वे कुछ कमा रहे  हैं… शेष के पास काम नहीं है… तो क्या यह माना जाय कि दुनिया के 60 फीसदी लोग निठल्ले है…

ऎसा नहीं है … क्यों की कुल आबादी में से 2 अरब से ज्यादा संख्या 15 साल की कम उम्र तक के बच्चों की है… यह कुल आबादी का सबसे बड़ा वर्ग है जो एक चौथाई से भी थोड़ा ज्यादा है… हालांकि लेसेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार फर्टिलिटी रेट घटने से आने वाले दशकों में बच्चों की संख्या में तेजी से गिरावट आएगी रिपोर्ट के अनुसार

इससे युवा आबादी कम होगी और जीवन की प्रत्याशा बढ़ने से आने वाले कुछ दशकों में बुजुर्गों की संख्या कुल आबादी में एक तिहाई से ज्यादा हो जाएगी इस समय दुनिया में बुजुर्गों की आबादी करीब 63 करोड़ है… आपको बता दे आज  से 300 साल पहले कमोबेश हर व्यक्ति किसान था क्योंकि जीवन जीने वह पेट भरने के लिए उसके पास खेती करने का ही विकल्प था… हालांकि औद्योगिक क्रांति से बदलाव की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन वह बहुत धीमी थी पर  जियो कंसोर्सियम की रिपोर्ट के अनुसार

तो कहने का मतलब यह… कि बची हुई आधी से ज्यादा आबादी का देश के विकास में कोई योगदान नहीं होता… या यूं कहे कि किसी देश के निट्ठल्लो का देश की जीडीपी में योगदान नहीं होता… लेकिन ऐसा नहीं है… जो लोग जॉब नहीं करते है वे भी देश के विकास में योगदान देते है..या यूं कहे कि जीडीपी में योगदान देते हैं…जैसे कि एक गृहणी… जो घर में खाना बनाती हैं उसका भी जीडीपी में योगदान है.. यह बात समझने के लिए सबसे पहले हमें जीडीपी को समझना होगा… तो आइए जानते है…जीडीपी क्या है दरअसल जीडीपी का मतलब होता है किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू जीडीपी से किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और देश की आर्थिक स्थिति को समझा जाता है… और ये पता किया जाता है कि सालभर में देश ने आर्थिक रूप से कैसा प्रदर्शन किया है… अगर किसी देश की जीडीपी बढ़ी हुई दिखाई जाती है तो यह समझना चाहिए कि वह देश आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है… लेकिन अगर जीडीपी में गिरावट दर्ज की जाती है तो यह माना जाना चाहिए कि देश की आर्थिक स्थिति सही नहीं है… लेकिन इसे आसान शब्दों में हम देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री से जानते हैं कि..जीडीपी है क्या?….

युवा फ्लेवर स्टैटिक्स ने एक जोरदार आकलन किया है उसने एक व्यक्ति की उम्र औसतन 78 साल मांगते हुए यह आकलन किया है… इसके अनुसार व्यक्ति 28.3 साल यानी कि करीब एक तिहाई हिस्सा सोने में खर्च कर देता है…  इसके अनुसार जिंदगी को लंबा जीने के लिए इतना सोना अनिवार्य है… इसके बाद सबसे ज्यादा समय उसका नौकरी या उसके व्यवसाय में निकलता है… और कुल मिलाकर साढ़े 10 साल का वह कामकाज को देता है… इसके बाद सबसे ज्यादा समय वह मनोरंजन जैसे कि टेलीविजन, वेब सीरीज, मैच देखने और सोशल मीडिया को देता है… 9 साल का समय जाया होता है लोगों को बेहतर परिस्थितियां बनाने के लिए…

पहला सुझाव-  सरकारें मानव पूंजी यानी कि ह्यूमन कैपिटल में निवेश बढ़ाएं।  यानी बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करें और बुनियादी कौशल के अलावा सोशल बिहेवियरल स्किल पर निवेश करें।

दूसरा सुझाव- सामाजिक सुरक्षा बढ़ाए निजी करण के कारण सामाजिक सुरक्षा का ढांचा कमजोर हुआ है। हर परिवार को न्यूनतम जीवन व स्वास्थ्य बीमा के कवरेज में शामिल किया जाए।

तीसरा सुझाव- सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने के लिए सरकारों को पैसे की दरकार होगी इस तरह की नीतियां लागू करें ताकि कर चोरी को रोककर समर्थ में ज्यादा कर वसूला जा सके।

https://youtu.be/Y0XF0PNhOyU