द्रौपदी मुर्मू यशवंत सिन्हा में मुकाबला

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24 जून को नामांकन दर्ज करेंगी द्रौपदी मुर्मू

मुर्मू के बहाने आदिवासी वोट पर नजर

देश में 9 फीसदी है आदिवासी वर्ग की संख्या

18 जुलाई को होना है राष्ट्रपति चुनाव

द्रोपर्दी मुर्मू के बहाने आदिवासी वोट पर नजर

बीजेपी प्रदेश मुख्‍यालय में कार्यक्रम आयोजित

आदिवासी रंग में रंगे सीएम शिवराज

बोले सीएम शिवराज मप्र में लागू किया जा रहा धीरे-धीरे पेसा एक्ट 

जनजातीय लोक-संगीत की धुनों पर थिरके शिवराज

शिवराज ने कांग्रेस पर लगाया आरोप

‘कांग्रेस ने किया जनजातीय वर्ग शोषण’

‘आदिवासियों को केवल वोट बैंक का साधन माना’

पीएम मोदी और राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व के प्रति जताया आभार

एमपी मेु 47 सीटें हैं आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित

2018 के चुनाव में बीजेपी को मिली 17 सीट

सीएम शिवराज ने लगाया कांग्रेस पर आरोप

‘कांग्रेस ने आदिवासियों का सिर्फ शोषण किया’

देश में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। एनडीए ने जहां झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू को अपना प्रत्याशी बनाया है…तो वहीं विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी यशवंत सिन्हा को इस बार राष्ट्रपति चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया है…दोनों का झारखंड की राजनीति से गहरा संबंध जगजाहिर है…दोनों के बीच लड़ाई बेहद दिलचस्प होने वाली है… बीजेपी ने आदिवासी महिला को प्रत्याशी बनाकर राजनीति में शानदार बल्लेबाजी की है… कई विपक्षी दल अभी तक समझ नहीं पा रहे कि उन्हें करना क्या है

दरअसल बीजेपी की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है.. पिछले कुछ चुनावों पर नजर डाले तो ये वर्ग बीजेपी से छिटक कर कांग्रेस ओर दूसरे स्थानीय दलों की ओर झुक गया था.. देश में आदिवासी वर्ग की जनसंख्या करीब 9 फीसदी है.. जिन्हें बीजेपी अपने पाले में करना चाहती है… बता दें अजा क्षेत्र से लोकसभा की 47 सीटें हैं… जबकि देश भर की करीब 487 विधानसभाओं में आदिवासी वर्ग महत्वर्पूण स्थिति में है…बीजेपी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव और इससे पहले कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका लाभ उठाना चाहती है…जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना हैं…उनमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात भी शामिल हैं…यहां यहां बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय निवास करता है…एमपी, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आदिवासी वर्ग के लिए 128 सीटें आरक्षित हैं… इनमें 37 सीटें बीजेपी के कब्जे में है…

बात मध्यप्रदेश की करें तो आदिवासी वर्ग की करीब दो करोड़ के आसपास है…वहीं 230 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं…यानी इन सीटों पर आदिवासी वोट हार या जीत तय कर सकते हैं…खास बात यह है कि इन 87 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं…यही वजह है कि भाजपा का पूरा फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है…क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की 230 में से 82 सीटें आरक्षित थीं… इसमें से बीजेपी 34 सीट ही जीत सकीं… 25 सीटों पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा…

https://youtu.be/IVt8K7uB2hc